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मैं कितनी बार चीख-चीख कर कहूं कि माओवादी हिंसा निंदनीय है। ऐसे तत्वों का हर हाल में सफाया होना चाहिए। इसके लिए सरकार को सुविचारित नीति बनाकर अंतिम युद्ध छेड़ देना चाहिए। माओवादी विचारों से सिर्फ पागल और सनकी ही इत्तेफाक रख सकते हैं। भारत की संस्कृति में यह विचारधारा पुष्पित-पल्लवित हो ही नहीं सकती। इस देश में माओवाद कई दशक पहले ही कदम रख चुका है लेकिन भारतीय भावनाओं से समन्वय न होने के कारण यह हाशिये पर चला गया। जहां तक डॉ. एस. शंकर सिंह की चिंता है तो उन्हें इस बात से अवगत होना चाहिए कि हर गरीब, हर आदिवासी माओवादी नहीं है। ऐसे निरीह लोगों को दुष्टों के चंगुल से आजाद कराने की जरूरत है। जहां तक सेना या वायुसेना के इस्तेमाल की बात है तो यह कदम इतना आसान नहीं है। आपको अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ख्याल रखते हुए ही कोई कार्रवाई करनी होगी। हर आदिवासी और हर गरीब को माओवादी मानकर उनके घरों पर बम नहीं गिराया जा सकता । इसके लिए सघन अभियान चलाकर दोषियों की पहचान करनी होगी। साथ ही साथ गरीबों और आदिवासियों के विकास के लिए निरंतर ईमानदारी के साथ कार्यक्रम भी चलाने होंगे। इन गरीबों और बेबसों को इतना मजबूत बनाना होगा जिससे वे खुद माओवादी घुसपैठियों को निकाल बाहर कर सकें।
कल्याण कुमार
बरेली
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